सुना है मैंने कि सिकंदर जब मरा, तो उस गांव में बड़ी हैरानी हो गई थी। सिकंदर की अर्थी निकली, तो उसके दोनों हाथ अर्थी के बाहर लटके हुए थे!
लाखों लोग देखने इकट्ठे हुए थे। सभी एक— दूसरे से पूछने लगे कि ऐसी अर्थी हमने कभी नहीं देखी कि हाथ और अर्थी के बाहर लटके हों। यह क्या ढंग हुआ!
सांझ होते—होते लोगों को पता चला कि यह भूल से नहीं हुआ। भूल हो भी नहीं सकती थी। कोई साधारण आदमी की अरथी न थी।
सिकंदर की अरथी थी। पता चला सांझ कि सिकंदर ने कहा था कि मरने के बाद मेरे दोनों हाथ अरथी के बाहर लटके रहने देना, ताकि लोग देख लें कि मैं भी खाली हाथ जा रहा हूं। मेरे हाथ में भी कुछ है नहीं। वह दौड़ बेकार गई। वह जुआ सिद्ध हुआ।
और यह वही आदमी है कि मरने के दस साल पहले एक यूनानी फकीर डायोजनीज से मिला था, तो डायोजनीज ने सिकंदर से पूछा था कि कभी तुमने सोचा सिकंदर, कि अगर तुम पूरी दुनिया जीत लोगे, तो फिर क्या करोगे?
तो डायोजनीज की यह बात सुनकर सिकंदर उदास हो गया था। और उसने कहा कि इससे मुझे बड़ी चिंता होती है, क्योंकि दूसरी तो कोई दुनिया नहीं है। अगर मैं यह जीत लंगूा, तो सच ही फिर मैं क्या करूंगा? अभी जीती नहीं थी उसने दुनिया।
लेकिन यह पूरी दुनिया भी जीत लेगा, तो भी वासना उदास हो गई। अभी जीती भी नहीं है, अभी सिर्फ सोचकर कि पूरी दुनिया जीत लूंगा तो—सच डायोजनीज, तुम मुझे उदास करते हो—फिर मैं क्या करूंगा? दूसरी तो कोई दुनिया नहीं है, जिसको मैं जीतने निकल जाऊं!
यह आदमी मरते वक्त.. बहुत कुछ जीतकर मरा था। बड़ा जुआरी था, सब कुछ दांव पर लगाया था। और बड़े ढेर लगा लिए थे जीत के। लेकिन मरते वक्त उसका यह कहना कि देख लें लोग कि मेरे हाथ खाली हैं, विचारणीय है।
सम्राट यहां भिखारी की तरह मर जाते हैं। कभी—कभी कोई भिखारी यहां सम्राटों की तरह मरता है। बुद्ध के हाथ भरे हुए हैं, सिकंदर के हाथ खाली हैं। क्या मामला है!
किस चीज से सिकंदर के हाथ खाली हैं? और किस चीज से बुद्ध के हाथ भरे हुए हैं? बुद्ध ने अपने को पाने की कोशिश की है, तो हाथ भरे हुए हैं। सिकंदर ने कुछ और पाने की कोशिश की है, स्वयं को छोड्कर, तो हाथ खाली हैं।
इससे कोई संबंध नहीं है कि आप क्या पाने की कोशिश कर रहे हैं, आपकी जिंदगी एक जुआ है, अगर आप अपने को छोड्कर कुछ भी पाने की कोशिश कर रहे हैं। और आखिर में आपके हाथ खाली होंगे, आखिर में आप हारे हुए विदा होंगे।
~ ओशो
गीता दर्शन